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इ॒दा हि त॑ उषो अद्रिसानो गो॒त्रा गवा॒मङ्गि॑रसो गृ॒णन्ति॑। व्य१॒॑र्केण॑ बिभिदु॒र्ब्रह्म॑णा च स॒त्या नृ॒णाम॑भवद्दे॒वहू॑तिः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idā hi ta uṣo adrisāno gotrā gavām aṅgiraso gṛṇanti | vy arkeṇa bibhidur brahmaṇā ca satyā nṛṇām abhavad devahūtiḥ ||

पद पाठ

इ॒दा। हि। ते॒। उ॒षः॒। अ॒द्रि॒सा॒नो॒ इत्य॑द्रिऽसानो। गो॒त्रा। गवा॑म्। अङ्गि॑रसः। गृ॒णन्ति॑। वि। अ॒र्केण॑। बि॒भि॒दुः॒। ब्रह्म॑णा। च॒। स॒त्या। नृ॒णाम्। अ॒भ॒व॒त्। दे॒वऽहू॑तिः ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:65» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसी है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अद्रिसानो) मेघ के बीच शिखर=चोटी रखनेवाली (उषः) प्रभातवेला के समान वर्त्तमान उत्तम स्त्री ! जैसे (ते) तेरे सम्बन्धी (अङ्गिरसः) पवनों के तुल्य (अर्केण) सूर्य्य (ब्रह्मणा) परमेश्वर वा वेद से (च) भी सूर्य्य को (गोत्रा) पृथिवी के समान वा (गवाम्) किरणों के सम्बन्ध को (वि, गृणन्ति) प्रस्तुत करते हैं और (बिभिदुः) विदीर्ण करते हैं, वैसे (इदा) अब (हि) ही (देवहूतिः) विद्वान् जन जिससे बुलाते हैं, वैसे तू प्रसिद्ध होती है सो तू (नृणाम्) मनुष्यों के बीच (सत्या) विद्यमान पदार्थों में उत्तम (अभवत्) होती है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे किरणें प्रभातवेला से सूर्य्यप्रकाश की निमित्त हैं, वैसे ही सत्य व्यवहारों को सिद्ध करने और दुष्ट व्यवहारों का निरोध करनेवाली उषा है, वैसी श्रेष्ठ स्त्री होती है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सा कीदृशीत्याह ॥

अन्वय:

हे अद्रिसानो उषर्वद्वर्त्तमाने वरे स्त्रि ! यथा ते सम्बन्धिनोऽङ्गिरसोऽर्केण ब्रह्मणा च सूर्य्य गोत्रेव गवां सम्बन्धं वि गृणन्ति बिभिदुश्च तथेदा हि देवहूतिर्भवति नृणां मध्ये सत्याऽभवत् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदा) इदानीम् (हि) खलु (ते) तव (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (अद्रिसानो) अद्रौ मेघे सानूनि यस्याः सा (गोत्रा) भूमिः। गोत्रेति पृथिवीनाम। (निघं०१.१) (गवाम्) किरणानाम् (अङ्गिरसः) वायव इव (गृणन्ति) स्तुवन्ति (वि) (अर्केण) सूर्येण (बिभिदुः) विदृणन्ति (ब्रह्मणा) परमेश्वरेण वेदेन वा (च) (सत्या) सत्सु पदार्थेषु साध्वी (नृणाम्) मनुष्याणाम् (अभवत्) भवति (देवहूतिः) देवा विद्वांस आह्वयन्ति यया सा ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! यथा किरणा उषसा सूर्य्यप्रकाशस्य निमित्तमस्ति तथैव सर्वेषां सत्यानां व्यवहाराणां साधिका दुष्टानां व्यवहाराणां निरोधिकोषा वर्त्तते तथा सती स्त्री भवति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी किरणे उषेद्वारे सूर्यप्रकाशाचे निमित्त आहेत तसे सत्य व्यवहार करणारी व दुष्ट व्यवहाराचा विरोध करणारी श्रेष्ठ स्त्री उषेप्रमाणे असते. ॥ ५ ॥